Vedic Astrology : Difference between Charanamrit and Pachamrit

जानिए क्या है चरणामृत और पंचामृत… मंदिर में जब भी कोई जाता है तो पंडितजी उसे चरणामृत या पंचामृत देते हैं। लगभग सभी लोगों ने दोनों ही पीया होगा। लेकिन बहुत कभी ही लोग इसकी महिमा और इसके बनने की प्रक्रिया को नहीं जानते होंगे। चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानि पांच पवित्र वस्तुओं से बना। दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है। शास्त्रों में कहा गया है- अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।। अर्थात : भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह केपापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है। जो चरणामृत का सेवनकरता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। कैसे बनता चरणामृत : तांबे के बर्तन में चरणामृतरूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं। चरणामृत में तुलसी पत्ता, तिल और दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं। मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला जल रखा ही रहता है। चरणामृत लेने के नियम : चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और श्रद्घाभक्तिपूरवक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है। चरणामृत का लाभ […]

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Vedic Astrology : Story of Dhanteras (Dhanteras ki Katha)

धनतेरस की कथा एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे, लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। विष्णु जी बोले- ‘यदि मैं जो बात कहूं, वैसे ही मानो, तो चलो।’ लक्ष्मी जी ने स्वीकार किया और भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी सहित भूमण्डल पर आए। कुछ देर बाद एक स्थान पर भगवान विष्णु लक्ष्मी से बोले-‘जब तक मैं न आऊं, तुम यहाँ ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत देखना।’ विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी को कौतुक उत्पन्न हुआ कि आख़िर दक्षिण दिशा में क्या है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं दक्षिण में क्यों गए, कोई रहस्य ज़रूर है। लक्ष्मी जी से रहा न गया, ज्योंही भगवान ने राह पकड़ी, त्योंही लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही दूर पर सरसों का खेत दिखाई दिया। वह ख़ूब फूला था। वे उधर ही चलीं। सरसों की शोभा से वे मुग्ध हो गईं और उसके फूल तोड़कर अपना शृंगार किया और आगे चलीं। आगे गन्ने (ईख) का खेत खड़ा था। लक्ष्मी जी ने चार गन्ने लिए और रस चूसने लगीं। उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज़ होकर शाप दिया- ‘मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानीं और यह किसान की चोरी का अपराध कर बैठीं। अब तुम उस किसान की 12 वर्ष तक इस अपराध की सज़ा के रूप में सेवा करो।’ ऐसा कहकर भगवान […]

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