Astrology : Period of Rahu Kaal

Rahu-kal is determined with reference to the time of Sun rise say at 6.00 A.M. Rahu-kal would be ruling the following hours of the day as indicated below: i) Sunday 4.30 p.m. to 6.00 p.m. ii) Monday 7.30 a.m. to 9.00 a.m. iii) Tuesday 3.00 p.m. to 4.30 p.m. iv) Wednesday 12.00 noon to 1.30 p.m. v) Thursday 1.30 p.m. to 3.00 p.m. vi) Friday 10.30 a.m. to 12.00 noon vii) Saturday 9.00 a.m. to 10.30 a.m.

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Mantra for lord Hanuman

ॐ वायुपुत्र ! नमस्तुभ्यं पुष्पं सौवर्णकं प्रियम् | पूजयिष्यामि ते मूर्ध्नि नवरत्न – समुज्जलम् || ॐ श्री संकट मोचकाय नमः ! राम हृदय आगार मेँ, माँ सीता के साथ ! बजरंगी रक्खो जरा मेरे सिर पर हाथ ! जय वीर हनुमान|| वो थी संकट की घड़ी, त्रेता युग के बीच ! अब भी हम पर आ पड़ी, दृष्टि किसी की नीच !! बजरंगी आओ जरा, हमको है दरकार ! सिया राम मय जगत है, तुम हो तारनहार !!

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Vamsa Vrudhi kara Durga Kavacham

Vamsa Vrudhi kara Durga Kavacham Sanaischara Uvacha:- Lord Sani told:- Bhagawan deva devesa krupaya thwam jagat prabho , vamsakhya kavacham broohi mahyam sishyaya they anagha yasya prabhavath devesa, Vamso vrudhir jayathe, Soorya Uvacha:- Srunu puthra pravakshyami , vamsakhyaam kavacham shubham, Santhana vrudhir, yath padath Garbha raksha sada nrunam. 1 Vandhyapi labhathe puthram kaka vandhya suthair yadha, Mrutha vathsa suputhra asyath sravath Garbha sthira praja. 2 Apushpa pushpinee yasaya , dharanascha sukha prasoo, Kanya praja puthreeni yethath sthothram prabhavatha. 3 Bhootha prathadhija bhadha, ya bhadha kali dhoshaja, Graha bhadha , deva bhadha bhadha shathru krutha cha yaa. 4 Bhasmee bhavathi sarvasthaa , kavachasya prabhavatha, Sarva rogo vinasyanthi sarve bala grahascha yea. 5 Poorva rakshathu Varahee, cha agneyam ambika swayam, Dakshine Chandika raksheth nairuthya hamsa vahini. 6 Varahe paschime raksheth, vayavyam cha maheswari, Uthare Vaishnavi raksheth , eesanyam simha vahini. 7 Oordhwam thu sharadha raksheth, adho rakshathu Parvathi, Shakambharee shiro raksheth, mukham rakshathu bhairavi. 8 Kantam rakshathu Chamunda, hrudayam rakshathachiva, Eesani cha bhujou raksheth, kukshim nabhim cha kalika. 9 Aparna hyudaram raksheth katim bhasthim Shiva Priya, Ooru rakshathu kaumari, jaya janu dhwayam thadha. 10 Gulphou padou sada raksheth Brahmani Parameshwari, Sarvangani sada raksheth durga durgarthi nasini. 11 Namo devyai maha devyai durgai sathatham nama, Puthra soukhyam dehi dehi Garbha raksham kurushwa na. 12 Om Hreem. Hreem hreem, sreem sreem sreem, Iym , Iym , Iym Mahakali . Maha Lakshmi , Maha Saraswathi roopayai, nava koti moorthyai, Durgayai nama, hreem, hreem, hreem. Durgarthi […]

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Kunjika Stotram

कुन्जिका स्तोत्रं शिव उवाच शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌। येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्‌॥1॥ न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌। न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌॥2॥ कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌। अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥3॥ गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌। पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥4॥ अथ मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ इति मंत्रः॥ नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषमर्दिन नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥1॥ जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥2॥ क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 3॥ विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।I4II क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥5॥ अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 6॥ सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥ इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥ यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्‌। न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥ । इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ । Kunjika stotran shrinu pravakshyami kunjikastotramuttamam devi Shiva speaks. Yen mantraprabhaven chandijapaah bhavet ||Kavchan nargalastotran […]

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Navgrah Chalisa

नवग्रह चालीसा :- Nav grah Chalisa :- श्री गणपति ग़ुरुपद कमल, प्रेम सहित शिरानाया | नवग्रह चालीसा कहत,शारद होत सहाय ll जय जय रवि शशि सोम बुध,जय गुरु भ्रगु शनि राज ll जयति राहू अरु केतु ग्रह, करहु अनुग्रह आजा ll श्री सूर्य स्तुति प्रथमही रवि कहं नावौ माथा, करहु कृपा जन जानी अनाथा l हे आदित्य दिवाकर भानु, मै मतिमन्द महा अग्यानु l अब निज जन कहं हरहु कलेशा, दिनकर द्वादशा रूपा दिनेषा l नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ मोघ क्षम्माकर l श्री चंद्र स्तुति शशि मयंक रजनिपति स्वामी, चंद्र कलानिधि नमो नमामि l राकापति हिमांशु राकेशा, प्रनवत जन तना हरहु कलेशा l सोम इंदु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रश्मि औषधि निशाकर l तुम्ही शोभित सुंदर भाल महेशा, शरण शरण जन हरहु कलेशा l श्री मंगल स्तुति जय जय मंगल सुखा दाता, लौहित भौमादिका विख्याता l अंगारक कुंज रुज ऋणहारि, दया करहु यही विनय हमारी l हे महिसुत छातिसुत सुखरासी,लोहितांगा जय जन अघनासी l अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरन कीजै l श्री बुध स्तुति जय शशि नंदन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहाँ शुभ काजा l दीजै बुद्धि सुमति सुजाना, कठिन कष्ट हरी करी कलियाना l हे तारासुत रोहिणी नंदन, चंद्र सुवन दुह्ख द्वंद निकन्दन l पूजहु आस दास कहूँ स्वामी प्रणत पाल प्रभु नमो नमामि l श्री ब्रहस्पति स्तुति जयति जयति जय श्री गुरु देवा, करहु सदा तुम्हारी प्रभु सेवा l देवाचार्य तुम गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्या दानी l वाचस्पति बागीसा उदारा, […]

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Gayatri Mantra

गायत्री मंत्र व उसका अर्थ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। अर्थ – उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। अर्थात् ‘सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें। विचार “गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।”

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